सर्वांगीण विकास ही नहीं अपितु करियर में भी सहायक संगीत विषय - अंतिमा धूपड़

संगीत मधुर ध्वनियों का लय में होने वाला वह प्रस्फुटन है,जिसे हमारे ग्रंथों में रूह की खुराक माना गया है।लेकिन यह हमारे देश की शिक्षा प्रणाली की विडंबना है कि जब इसे एक विषय के तौर पर लेने या इसमें कॅरियर बनाने की बात आती है,तो हमारे अभिभावकों की भृकुटियां तन जाती हैं। इसके पीछे शायद सदियों से चली आ रही हमारी संकीर्ण मानसिकता है जिसके तहत नृत्य और संगीत को हमेशा केवल भांड और मरासियों एक का काम समझा जाता है। यही कारण है कि आज भी विद्यालयों में नर्सरी से लेकर दसवीं तक संगीत को एक मुख्य विषय के रूप में नहीं रखा गया है,बस एक शौक की तरह ही अपनाया जाता है और आगे चलकर जब स्कूल में दसवीं के बाद या फिर कॉलेज में विषय के चुनाव का प्रश्न आता है,तो बहुत कम विद्यार्थी ही इस विषय के साथ आगे बढ़ने के इच्छुक होते हैं और इसका सबसे मुख्य कारण इस विषय के साथ कॅरियर में आगे बढ़ने की संभावनाओं के बारे में समुचित ज्ञान की कमी रही है।अब इस विषय में यह जानना सर्वाधिक आवश्यक है कि संगीत का अध्ययन या ज्ञान सिर्फ मनोरंजन हेतु ही जरूरी नहीं है, बल्कि आज के भागदौड और तनाव वाले माहौल में यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये भी लाभदायक है और समय की मांग यह जानकारी अर्जित करने की है कि इसका उचित ज्ञान या इस विषय में उच्च शिक्षा ग्रहण कर आजीविका के साधन को भी सुगमता से बढ़ाया जा सकता है।संगीत अध्यापक,शोधकर्ता, संगीत निर्देशक,स्टूडियो में रिकार्डर के रूप में, संगीत अभिनेता,संगीत चिकित्सक, डिस्क जॉकी,वाद्य यंत्रों के व्यापारी आदि ऐसे कितने ही विकल्प आपके सामने बाहें फैलाए आपका स्वागत करते दिखाई देंगे। बस कोशिश यही करनी होगी कि संगीत विषय को लेकर फैले भ्रम कि इसका कोई स्कोप नहीं है, को दूर कर अभिभावकों को अपने बच्चों को इसकी शिक्षा के लिए प्रेरित करना चाहिए और शिक्षा विभाग को भी स्कूलों में इसे प्रमुख विषय का स्थान दिलाने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।यह कहना है देवकी देवी जैन मेमोरियल कॉलेज फॉर विमेन लुधियाना की संगीत गायन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर का।