किसी वीरान सड़क का एक छोरकिसी अनजान रास्ते का एक मोड़गुज़रते वक़्त का एक अदना सा पल यही कहीं तो मिले थे हमदो रहगुज़र!कोई मंजिल नहींबस रास्ता ही रास्तातुम कहते थे एक खूबसूरत पड़ाव हो तुममैं कहती फिर मंजिल क्या होगी...?तुम कहते राहगीरों की कोई मंजिल नहीं होतीइस दुनिया का हर शख्स उसकी राह का फ़कीरमुसाफ़िर है एक ...कई मोड़, कई तन्हा रास्तेकभी मख़मली घासतो कभी पैरों में छालेन मिलने का पता न बिछड़ने की खबरवक़्त की हर शय से अंजानमो'जिज़ा-ए-ज़ीस्त कि बिछड़ कर ही लगाअब मिले हैं...चलते चलते यूँ बेखबरकभी सोचा था...जब नहीं होगा तो क्या होगा...